बचपन की नींदें
फिर से वही सुकून भरी सांसे माँ की गोद की वह एहसासे जंहा बेखौफ है मेरा निश्चल शरीर फिर से पाना चाहूंगी वो यादें दे दो प्रभु बचपन की वो नींदें आधुनिकता के इस दौड़ में थक गई मैं आज इस थकावट को दूर करने का कोई साधन नहीं मेरे पास नींदों में भी आँखे खुली रह जाती है सनसनी दुनियाँ का नजराना आँखों में आ जाती है नहीं आती मुझे बेखौफ सुकून सी नींदें हे प्रभु दे दो मुझे बचपन की वो नींदें गतिशीलता के इस जीवन में सांसों के एहसास को भी नहीं समझ प् रही शरीर में दर्द इतना की किस अंग में तकलीफे नहीं जान पा रही दर्द का न हो अहसास वो विश्राम मुझे दिला दे हे प्रभु बचपन की वो नींदें लौटा दे ||