mridula bhaskar gond एक आसमा बन जा चाँदनी से भरा और मैं चाँद बन जाऊ एक सपना बन जा हकीकत की तरह और मैं नींद बन जाऊ एक सागर बन जा लहरों से भरा और मैं नदी बन जाऊ बादल बन जा पानी से भरा और मैं जमी बन जाऊ बारिश बन जा मोती की तरह और मैं ताल बन जाऊ। ..
Posts
Showing posts with the label gond mridula bhaskar gond
कविता- भोर की आशा
- Get link
- Other Apps
उम्मीद काले अंधकार के बाद जब किरण सी आ दिखती है सुस्त प्राण चुस्त हो जीतने दुनियाँ को निकलती है काया कल्प निहारकर इत्र टाई डालकर योग्यता के पर्चें बाहों में दबाएं परिचय पत्र लटकाकर चली जा रही है दुनियाँ फिर से वही रेस में जिसमें कल धक्कर फिर वापस आ गएं थे, किसी और भेस में पर मन में वही ढाडस है क्या हुआ आज जो बीत गया पर कल कभी बीतेगा नहीं अवसर की तलाश में कभी फिर वही मरीचिका दिखनें लगती है सुस्त प्राण चुस्त हो जीतने दुनियाँ निकलती है।