mridula bhaskar gond एक आसमा बन जा चाँदनी से भरा और मैं चाँद बन जाऊ एक सपना बन जा हकीकत की तरह और मैं नींद बन जाऊ एक सागर बन जा लहरों से भरा और मैं नदी बन जाऊ बादल बन जा पानी से भरा और मैं जमी बन जाऊ बारिश बन जा मोती की तरह और मैं ताल बन जाऊ। ..
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कविता- भोर की आशा
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By Mridula bhaskar
Mridula Bhaskar Gond
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