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शाम तक

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कहां खो गये तुम सुबह के उजाले में देखो भीड़ बड़ी है दुनिया में रास्ते हैं बड़े उलझे से और लोग हैं बहुत सख्त पता साथ रखना पर पता याद रखना किसी को क्या फुरसत पड़ी तुम्हें रास्ता पार कराने में खैर आना तो तुम्हें होगा पर याद रहे  आज के ढलते शाम के पहले इन समुद्री लहरों के ऊँचे उठने से पहले पक्षियों के घोसले में  लौटने से पहले चांदनी के आसमान में बिखरने से पहले तुम इस दरवाजे लौट आना लौट आना तुम कुछ याद के साथ लौट आना तुम कुछ अहसास के साथ लौट आना तुम हमारे प्यार के साथ

मेरा पत्र

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               मेरा पत्र कलम हाथ में हैं और निगाह इस कागज के पन्ने पर,  सोच रही लिख दूं तुझे एक खत , पर अब खतों का रिस्ता कहां,  सबर कहां तुम्हे पढ़ने और मुझे लिखने का,  पर फिर भी लिख रही हूँ  फिर कभी सोचती  , क्या रखा है इन शब्दों और स्याहीयों में    पर शायद, कुछ अहसास ही काफी होगा,  फिर मैं सोचू,  कैसे पहुँचे तुम तक ये हवा की महक,  कैसे पहुँचे तुम तक मेरी मेहंदी की महक,  कैसे दिखाऊ आज गमले में हमारे, एक नया फूल खिला है ये बरसात कैसे तुम तक भेजु , जो आंगन में गिर कर बहते जा रहा है।  कैसे भेजु ये ठंडी हवा,  जो इन बरसात के बूंदों को   छूते हुए आ रही है।  देखो बादल में छुपे सूरज को,  जो डर रहा  हो जैसे बाहर आने को । इन अहसासों को कैसे कहूं और कैसे लिखूं  पर फिर भी लिख रही हूँ,  कुछ अपने अर्थो में  और कोशिश कर रही हूँ   ऐ दृश्य इन शब्दों में बस जाये,  और जब तुम इन्हें पढ़ों  ये बाहर निकल आये  तब जब देखुंगी, तुम्हें पढ़ते इन्हें,  तुम्हारे चहेरे के हर रंग और हर ढंग को  और तब मैं अपने इस लेखन की  सफलता और असफलता का  परिणाम दे पाऊंगी ।

मेरा भी घर

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मेरा भी घर सपनों में भी न हिम्मत हो चाहने को ऐसी एक चाहत मेरा घर सूरज की तेज किरणों से बारिश की तेज झरनों से मुझको बचाये ऐसा घर मेरी चाहत मेरा घर छोटा हो कोई बात नहीं टूटा सा हो कोई परवाह नहीं घिरा हो चार दीवारों  से और मेरे सिर पत एक छत मेरी बस चाहत मेरा घर दिनभर के इस थकान को इस कोयले सी जान को ले जाऊ कहां जहां न कोई डर मेरी चाहत मेरा घर इन्सान के इस अर्थ में मेरी परिभाषा भी ले जाओ कोई कमाता हूँ, खाता हूँ, रोता हूँ और गुनगुनाता हूँ ऊपर पुल है और बगल सड़क न परिवार है न आधार है। कैसे पूरा होगा तेरा वर तेरी चाहत मेरा घर ।