mridula bhaskar gond एक आसमा बन जा चाँदनी से भरा और मैं चाँद बन जाऊ एक सपना बन जा हकीकत की तरह और मैं नींद बन जाऊ एक सागर बन जा लहरों से भरा और मैं नदी बन जाऊ बादल बन जा पानी से भरा और मैं जमी बन जाऊ बारिश बन जा मोती की तरह और मैं ताल बन जाऊ। ..
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एक मुलाकात
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mridula bhaskar gond लम्बे दिनों बाद फिर उनसे मुलाक़ात हुई मिली नज़रे लेकिन उनसे न कोई बात हुई मैं उन्हें पहचानते रह सी गई और वो मुझे पहचानते रह से गए देखते ही देखते हम दो पल अनजाने रह गए उस सफ़र के कुछ पल को चुराने का मन था पर एक पल आँख झुकी देखा वो जाने लगे जी भर उठा लगा, जोर की आवाज लगा दूँ पर उनका नाम क्या था ? बस आँखे उन्हें दूर तक निहारने लग गए न जाने फिर कब होगी मुलाक़ात उनसे अब नए अफ़साने हम बनाने लग गए हम तो छोड़ गए उन्हें ,उनकी यादों के साथ कुछ ऐसा हो की उन्हें ,हम याद आने लगे ||
खुद से मुलाकात कर ले ।
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शाम तक
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कहां खो गये तुम सुबह के उजाले में देखो भीड़ बड़ी है दुनिया में रास्ते हैं बड़े उलझे से और लोग हैं बहुत सख्त पता साथ रखना पर पता याद रखना किसी को क्या फुरसत पड़ी तुम्हें रास्ता पार कराने में खैर आना तो तुम्हें होगा पर याद रहे आज के ढलते शाम के पहले इन समुद्री लहरों के ऊँचे उठने से पहले पक्षियों के घोसले में लौटने से पहले चांदनी के आसमान में बिखरने से पहले तुम इस दरवाजे लौट आना लौट आना तुम कुछ याद के साथ लौट आना तुम कुछ अहसास के साथ लौट आना तुम हमारे प्यार के साथ
मेरा पत्र
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मेरा पत्र कलम हाथ में हैं और निगाह इस कागज के पन्ने पर, सोच रही लिख दूं तुझे एक खत , पर अब खतों का रिस्ता कहां, सबर कहां तुम्हे पढ़ने और मुझे लिखने का, पर फिर भी लिख रही हूँ फिर कभी सोचती , क्या रखा है इन शब्दों और स्याहीयों में पर शायद, कुछ अहसास ही काफी होगा, फिर मैं सोचू, कैसे पहुँचे तुम तक ये हवा की महक, कैसे पहुँचे तुम तक मेरी मेहंदी की महक, कैसे दिखाऊ आज गमले में हमारे, एक नया फूल खिला है ये बरसात कैसे तुम तक भेजु , जो आंगन में गिर कर बहते जा रहा है। कैसे भेजु ये ठंडी हवा, जो इन बरसात के बूंदों को छूते हुए आ रही है। देखो बादल में छुपे सूरज को, जो डर रहा हो जैसे बाहर आने को । इन अहसासों को कैसे कहूं और कैसे लिखूं पर फिर भी लिख रही हूँ, कुछ अपने अर्थो में और कोशिश कर रही हूँ ऐ दृश्य इन शब्दों में बस जाये, और जब तुम इन्हें पढ़ों ये बाहर निकल आये तब जब देखुंगी, तुम्हें पढ़ते...
मेरा भी घर
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मेरा भी घर सपनों में भी न हिम्मत हो चाहने को ऐसी एक चाहत मेरा घर सूरज की तेज किरणों से बारिश की तेज झरनों से मुझको बचाये ऐसा घर मेरी चाहत मेरा घर छोटा हो कोई बात नहीं टूटा सा हो कोई परवाह नहीं घिरा हो चार दीवारों से और मेरे सिर पत एक छत मेरी बस चाहत मेरा घर दिनभर के इस थकान को इस कोयले सी जान को ले जाऊ कहां जहां न कोई डर मेरी चाहत मेरा घर इन्सान के इस अर्थ में मेरी परिभाषा भी ले जाओ कोई कमाता हूँ, खाता हूँ, रोता हूँ और गुनगुनाता हूँ ऊपर पुल है और बगल सड़क न परिवार है न आधार है। कैसे पूरा होगा तेरा वर तेरी चाहत मेरा घर ।
कविता- पता चला है तुम भी इसी शहर में हो
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बारिश बरस के रुक गई है आसमा में पानी के बादल मडरा रहे हैं हवाएं ठंडी हो गई हैं और मस्ती से नाच रही है कह रही है तुम भी इसी शहर में हो । जमी की सोंधी खुशबू पूरे फिज़ा में महक उठी है इन खुस्बू से पता चला है तुम भी इसी शहर में हो । चिड़ियों का एक झुंड निकल पड़ा है घौसलों से इस नए मौसम की सैर को न जाने क्या ये बातें कर रही हैं या कोई संगीत की धुन सजा रही हैं इनके गीतों से पता चला है तुम भी इसी शहर में हो । न जानें क्यों इतनी खुश हूं मैं तेरी यहां उपस्थिति पर न बातें हैं न मुलाकाते हैं एक अरसा हो गया है जैसे पर मैं शायद ख़ुश हूं उन पुरानी यादों और मुलाकातों पर हवाओं पर मैंने भी भेजा है ये पैग़ाम मैं भी हूं इसी शहर में ।
कविता - एक चिट्ठी
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एक चिट्ठी आई उसका एक लम्बे वर्षों में दूर परदेश में रहता है वो यही पांच छै वर्षों से शहर उसे रास आया हम यहीं हैं बरसों से कहां है वो ये ना मुझसे पूछना बात चीत नहीं हो पा रही ना जाने कितने वर्षों से है सुरक्षित यही काफी है इन आंखों में नींद आ जाने को मैं जानता हूं वो खुश हैं और वो जानता है हम बहुत खुश हैं हां हम हैं मेरे बेटे तुम्हें ख़ुश देखकर चिट्ठी हाथों में हैं मेरे पर ना जानें नहीं जी कर रहा पढ़ने को
कविता - दो शब्द
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कविता- वो शाम का लाल बादल
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कविता - एक अजीब सा एहसास होता है
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एक अजीब सा अहसास होता है कोई नहीं जब साथ होता है यूं ही बदहवास सा होता है एक खामोशी सा पास होता है न कुछ पाने का आस होता है न कुछ छूट जाने का आभास होता है शून्य हो जाती इच्छाओं की ढेर जो है जितना है पर्याप्त होता है क्या है, कुछ है ,जैसा है ,क्यों हैं जीवन जैसे कोई उपन्यास हो जाता है सागर के रेत बिछौने पर हाथ सिरहाने रख लेट जाते हैं आसमां पर नज़रे टिकाए भाव शून्य जैसे हो जाते हैं और सोचता ये मन अपना कोई क्या हरदम पास होता है बस अपने सासों का अहसास होता है।।
कविता- अपने आवाज को न लगाम दे
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कविता - मेरा बस्तर
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कविता- सोच कोई शब्द नया
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कुछ अपना सोच कोई शब्द नया दिलो की उमंगें जवा बादलों को पंख मिले बरसती ये जंहा फिरे कागज़ के इस नाव को तू ऐसे न सागर में गिरा दिलों के ताल खोल के बना ले कोई सागर नया समय के इस रफ़्तार को जाना कहाँ क्या पता छोड़ तू इस हिसाब को घड़ी कोई अपना बना सपनों के ओस बूंदों को अब तो जमी पे गिरा नींद को सिरहाने पर रख सपना कोई अपना बना ।
कविता- यादों की स्याही
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Poetry on eyes
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कविता- भोर की आशा
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