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मेरा पत्र

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               मेरा पत्र कलम हाथ में हैं और निगाह इस कागज के पन्ने पर,  सोच रही लिख दूं तुझे एक खत , पर अब खतों का रिस्ता कहां,  सबर कहां तुम्हे पढ़ने और मुझे लिखने का,  पर फिर भी लिख रही हूँ  फिर कभी सोचती  , क्या रखा है इन शब्दों और स्याहीयों में    पर शायद, कुछ अहसास ही काफी होगा,  फिर मैं सोचू,  कैसे पहुँचे तुम तक ये हवा की महक,  कैसे पहुँचे तुम तक मेरी मेहंदी की महक,  कैसे दिखाऊ आज गमले में हमारे, एक नया फूल खिला है ये बरसात कैसे तुम तक भेजु , जो आंगन में गिर कर बहते जा रहा है।  कैसे भेजु ये ठंडी हवा,  जो इन बरसात के बूंदों को   छूते हुए आ रही है।  देखो बादल में छुपे सूरज को,  जो डर रहा  हो जैसे बाहर आने को । इन अहसासों को कैसे कहूं और कैसे लिखूं  पर फिर भी लिख रही हूँ,  कुछ अपने अर्थो में  और कोशिश कर रही हूँ   ऐ दृश्य इन शब्दों में बस जाये,  और जब तुम इन्हें पढ़ों  ये बाहर निकल आये  तब जब देखुंगी, तुम्हें पढ़ते इन्हें,  तुम्हारे चहेरे के हर रंग और हर ढंग को  और तब मैं अपने इस लेखन की  सफलता और असफलता का  परिणाम दे पाऊंगी ।