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मेरा मुझ पर सितम

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mridula bhaskar gond    सुनती हूँ बातें तेरी पर  अनसुना कर  जाती हूँ मैं  पड़ती हूँ आँखें तेरी पर  अनपढ़ सी दिखा जाती हूँ मैं  समझती हूँ तेरी पागल सी हरकतें  पर नासमझ बन जाती हूँ मैं  महसूस करती हूँ तेरा दर्द पर बेदर्द तुझे दिखा जाती हूँ मैं  नहीं बढ़ा मुझसे नजदीकियां  या निभाने का साहस  भी रख  कहतें रहोगे तुम अपनी लाख दफा पर मुझे सुनने का सयम भी रख  पर बदलती कँहा हैं तेरी आदतें  खुद मैं ही बदलाव कर जाया करती हूँ  तुझ पर किये मेरे सितम पर  कभी खुद को रुला जाती हूँ |