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शुरुआत

दिन नया लो रंग नया लो उमंग नया लो  चाय का संग नया लो हांजी, जीने का ढंग नया लो  फूलों भरी इस वादी में कुछ भीनी सी सुगन्ध नया लो उगते उस सूरज की किरणों से  ऊर्जा की तरंग नया लो  बीतें तुम्हारी उन डायरी में  जीने का सबक नया लो  लिखो तुम उसमें फिर ऐसा .... चलो फिर शुरुआत लो पन्नें नया लो 
उसके रोने की आवाज अब  मुझ पर हंसी सुनाई देती है ।

Mridula

हमे शोर भी पसंद है  पर खामोशी के बाद ।

Mridula

ए आसमा बता दे सारी बारिश तुमने  बरसा दी  या कुछ बचा भी रखा है मेरे लिए ।