कविता - एक अजीब सा एहसास होता है
एक अजीब सा अहसास होता है कोई नहीं जब साथ होता है यूं ही बदहवास सा होता है एक खामोशी सा पास होता है न कुछ पाने का आस होता है न कुछ छूट जाने का आभास होता है शून्य हो जाती इच्छाओं की ढेर जो है जितना है पर्याप्त होता है क्या है, कुछ है ,जैसा है ,क्यों हैं जीवन जैसे कोई उपन्यास हो जाता है सागर के रेत बिछौने पर हाथ सिरहाने रख लेट जाते हैं आसमां पर नज़रे टिकाए भाव शून्य जैसे हो जाते हैं और सोचता ये मन अपना कोई क्या हरदम पास होता है बस अपने सासों का अहसास होता है।।