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कविता - एक चिट्ठी
By Mridula bhaskar
Mridula Bhaskar Gond
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एक चिट्ठी आई उसका एक लम्बे वर्षों में दूर परदेश में रहता है वो यही पांच छै वर्षों से शहर उसे रास आया हम यहीं हैं बरसों से कहां है वो ये ना मुझसे पूछना बात चीत नहीं हो पा रही ना जाने कितने वर्षों से है सुरक्षित यही काफी है इन आंखों में नींद आ जाने को मैं जानता हूं वो खुश हैं और वो जानता है हम बहुत खुश हैं हां हम हैं मेरे बेटे तुम्हें ख़ुश देखकर चिट्ठी हाथों में हैं मेरे पर ना जानें नहीं जी कर रहा पढ़ने को
कविता - एक अजीब सा एहसास होता है
By Mridula bhaskar
Mridula Bhaskar Gond
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एक अजीब सा अहसास होता है कोई नहीं जब साथ होता है यूं ही बदहवास सा होता है एक खामोशी सा पास होता है न कुछ पाने का आस होता है न कुछ छूट जाने का आभास होता है शून्य हो जाती इच्छाओं की ढेर जो है जितना है पर्याप्त होता है क्या है, कुछ है ,जैसा है ,क्यों हैं जीवन जैसे कोई उपन्यास हो जाता है सागर के रेत बिछौने पर हाथ सिरहाने रख लेट जाते हैं आसमां पर नज़रे टिकाए भाव शून्य जैसे हो जाते हैं और सोचता ये मन अपना कोई क्या हरदम पास होता है बस अपने सासों का अहसास होता है।।
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