कविता- पता चला है तुम भी इसी शहर में हो


बारिश बरस के रुक गई है
आसमा में पानी के बादल मडरा रहे हैं
हवाएं ठंडी हो गई हैं
और मस्ती से नाच रही है
कह रही है
तुम भी इसी शहर में हो ।

जमी की सोंधी खुशबू
 पूरे फिज़ा में महक उठी है
इन खुस्बू से पता चला है
तुम भी इसी शहर में हो ।

चिड़ियों का एक झुंड
निकल पड़ा है घौसलों से
इस नए मौसम की सैर को
न जाने क्या ये बातें कर रही हैं
या कोई संगीत की धुन सजा रही हैं
इनके गीतों से पता चला है
तुम भी इसी शहर में हो ।

न जानें क्यों इतनी खुश हूं मैं
तेरी यहां उपस्थिति पर 
न बातें हैं न मुलाकाते हैं
एक अरसा हो गया है जैसे
पर मैं शायद ख़ुश हूं 
उन पुरानी यादों और मुलाकातों पर
हवाओं पर मैंने भी भेजा है 
ये पैग़ाम
मैं भी हूं  इसी शहर में ।






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