Poetry on eyes
आँखों में डूबें हैं सौं प्याले तुम्हारे तुम इतने नशीले इन्हें बना आते हो
एक दरिया सा लगता हैं ये
तुम रोज इन्हें
और गहरा कर आते हो
डरती हूँ पास जाने से इसके
पर तुम कोई आकर्षण
दिखा जाते हो
लिखते हो तुम इनमें कोई
कागज़ की तरह
आँसुओं को स्याही में
उतार आते हो
पड़ती है मेरी नज़रे इन्हें
पर पर अनपढ़ करार
कर देती हैं
और तुम वही जिद्दी किस्म के
सामने मेरे आ
बैठ जाते हो
और एक नया अध्याय लिए
इन नज़रो को तुम
पढ़ाते हो ।
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