कविता- झूलसा मन


जीवन के इस अंगार में 
तप रहा मन मेरा 
आग की ज्वाला में 
झुलस रहा तन मेरा 

और न तू हवा चला 
इस दर्द को न बढ़ा 
आग की चिंगारियों को
 यू  लपटों में न चढ़ा 

नहीं गिरा पानी की बूंदें
 और न तू मुझपे रहम दिखा   
तेरे हर उपचार में 
मेरा दर्द है और बढ़ा 

अब प्रार्थना है तुझसे मेरी 
और न कोई सितम दिखा 
सूरज के इस ताप को 
अब तो बादलों में छिपा। 


Comments

Popular posts from this blog

कविता - एक चिट्ठी

कविता - एक अजीब सा एहसास होता है