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शुरुआत

दिन नया लो रंग नया लो उमंग नया लो  चाय का संग नया लो हांजी, जीने का ढंग नया लो  फूलों भरी इस वादी में कुछ भीनी सी सुगन्ध नया लो उगते उस सूरज की किरणों से  ऊर्जा की तरंग नया लो  बीतें तुम्हारी उन डायरी में  जीने का सबक नया लो  लिखो तुम उसमें फिर ऐसा .... चलो फिर शुरुआत लो पन्नें नया लो 
उसके रोने की आवाज अब  मुझ पर हंसी सुनाई देती है ।

Mridula

हमे शोर भी पसंद है  पर खामोशी के बाद ।

Mridula

ए आसमा बता दे सारी बारिश तुमने  बरसा दी  या कुछ बचा भी रखा है मेरे लिए ।

बचपन की नींदें

फिर से वही सुकून भरी सांसे  माँ की गोद की वह एहसासे  जंहा बेखौफ है मेरा निश्चल शरीर  फिर से पाना चाहूंगी वो यादें  दे दो प्रभु बचपन की वो नींदें  आधुनिकता के इस दौड़ में  थक गई मैं आज  इस थकावट को दूर करने का  कोई साधन नहीं मेरे पास  नींदों में भी आँखे खुली रह जाती है  सनसनी दुनियाँ का नजराना आँखों में आ जाती है  नहीं आती मुझे बेखौफ सुकून सी नींदें  हे प्रभु दे दो मुझे बचपन की वो नींदें   गतिशीलता के इस जीवन में  सांसों के एहसास को भी नहीं समझ प् रही  शरीर में दर्द इतना की  किस अंग में तकलीफे नहीं जान पा रही  दर्द का न हो अहसास वो विश्राम मुझे दिला दे  हे प्रभु बचपन की  वो नींदें लौटा दे  ||

मेरा मुझ पर सितम

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mridula bhaskar gond    सुनती हूँ बातें तेरी पर  अनसुना कर  जाती हूँ मैं  पड़ती हूँ आँखें तेरी पर  अनपढ़ सी दिखा जाती हूँ मैं  समझती हूँ तेरी पागल सी हरकतें  पर नासमझ बन जाती हूँ मैं  महसूस करती हूँ तेरा दर्द पर बेदर्द तुझे दिखा जाती हूँ मैं  नहीं बढ़ा मुझसे नजदीकियां  या निभाने का साहस  भी रख  कहतें रहोगे तुम अपनी लाख दफा पर मुझे सुनने का सयम भी रख  पर बदलती कँहा हैं तेरी आदतें  खुद मैं ही बदलाव कर जाया करती हूँ  तुझ पर किये मेरे सितम पर  कभी खुद को रुला जाती हूँ |    
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mridula bhaskar gond   एक आसमा बन जा  चाँदनी से भरा  और मैं चाँद बन जाऊ  एक सपना बन जा  हकीकत की तरह  और मैं नींद बन जाऊ  एक सागर बन जा लहरों से भरा  और मैं नदी बन जाऊ  बादल बन जा  पानी से भरा  और मैं जमी बन जाऊ  बारिश बन जा  मोती की तरह  और मैं ताल बन जाऊ। ..