कविता - एक चिट्ठी



एक चिट्ठी आई उसका
एक लम्बे वर्षों में
दूर परदेश में  रहता है वो
यही पांच छै वर्षों से
शहर उसे रास आया
हम यहीं हैं बरसों से
कहां है वो
ये ना मुझसे पूछना
बात चीत नहीं हो पा रही
ना जाने कितने वर्षों से
है सुरक्षित यही काफी है
इन आंखों में नींद आ जाने को
मैं जानता हूं वो खुश हैं
और वो जानता है हम बहुत खुश हैं
हां हम हैं मेरे बेटे
तुम्हें ख़ुश देखकर
 चिट्ठी हाथों में हैं मेरे
पर ना जानें
नहीं जी कर रहा पढ़ने को


Comments

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 06 जून 2020 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
Onkar said…
सुन्दर प्रस्तुति

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