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कविता- बातों बातों में
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By Mridula bhaskar
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कविता - एक अजीब सा एहसास होता है
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एक अजीब सा अहसास होता है कोई नहीं जब साथ होता है यूं ही बदहवास सा होता है एक खामोशी सा पास होता है न कुछ पाने का आस होता है न कुछ छूट जाने का आभास होता है शून्य हो जाती इच्छाओं की ढेर जो है जितना है पर्याप्त होता है क्या है, कुछ है ,जैसा है ,क्यों हैं जीवन जैसे कोई उपन्यास हो जाता है सागर के रेत बिछौने पर हाथ सिरहाने रख लेट जाते हैं आसमां पर नज़रे टिकाए भाव शून्य जैसे हो जाते हैं और सोचता ये मन अपना कोई क्या हरदम पास होता है बस अपने सासों का अहसास होता है।।
कविता- बीच में पड़ी सीढ़ी
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कविता- अपने आवाज को न लगाम दे
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कविता - मेरा बस्तर
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कविता- झूलसा मन
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जीवन तपन जीवन के इस अंगार में तप रहा मन मेरा आग की ज्वाला में झुलस रहा तन मेरा और न तू हवा चला इस दर्द को न बढ़ा आग की चिंगारियों को यू लपटों में न चढ़ा नहीं गिरा पानी की बूंदें और न तू मुझपे रहम दिखा तेरे हर उपचार में मेरा दर्द है और बढ़ा अब प्रार्थना है तुझसे मेरी और न कोई सितम दिखा सूरज के इस ताप को अब तो बादलों में छिपा।
कविता- सोच कोई शब्द नया
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कुछ अपना सोच कोई शब्द नया दिलो की उमंगें जवा बादलों को पंख मिले बरसती ये जंहा फिरे कागज़ के इस नाव को तू ऐसे न सागर में गिरा दिलों के ताल खोल के बना ले कोई सागर नया समय के इस रफ़्तार को जाना कहाँ क्या पता छोड़ तू इस हिसाब को घड़ी कोई अपना बना सपनों के ओस बूंदों को अब तो जमी पे गिरा नींद को सिरहाने पर रख सपना कोई अपना बना ।
कविता- यादों की स्याही
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Poetry on eyes
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