Posts

एक जमाना लगा था खुद को बनाते  एक लम्हें में मैंने खुद को गवा दिया | 

बचपन की नींदें

फिर से वही सुकून भरी सांसे  माँ की गोद की वह एहसासे  जंहा बेखौफ है मेरा निश्चल शरीर  फिर से पाना चाहूंगी वो यादें  दे दो प्रभु बचपन की वो नींदें  आधुनिकता के इस दौड़ में  थक गई मैं आज  इस थकावट को दूर करने का  कोई साधन नहीं मेरे पास  नींदों में भी आँखे खुली रह जाती है  सनसनी दुनियाँ का नजराना आँखों में आ जाती है  नहीं आती मुझे बेखौफ सुकून सी नींदें  हे प्रभु दे दो मुझे बचपन की वो नींदें   गतिशीलता के इस जीवन में  सांसों के एहसास को भी नहीं समझ प् रही  शरीर में दर्द इतना की  किस अंग में तकलीफे नहीं जान पा रही  दर्द का न हो अहसास वो विश्राम मुझे दिला दे  हे प्रभु बचपन की  वो नींदें लौटा दे  ||

मेरा मुझ पर सितम

Image
mridula bhaskar gond    सुनती हूँ बातें तेरी पर  अनसुना कर  जाती हूँ मैं  पड़ती हूँ आँखें तेरी पर  अनपढ़ सी दिखा जाती हूँ मैं  समझती हूँ तेरी पागल सी हरकतें  पर नासमझ बन जाती हूँ मैं  महसूस करती हूँ तेरा दर्द पर बेदर्द तुझे दिखा जाती हूँ मैं  नहीं बढ़ा मुझसे नजदीकियां  या निभाने का साहस  भी रख  कहतें रहोगे तुम अपनी लाख दफा पर मुझे सुनने का सयम भी रख  पर बदलती कँहा हैं तेरी आदतें  खुद मैं ही बदलाव कर जाया करती हूँ  तुझ पर किये मेरे सितम पर  कभी खुद को रुला जाती हूँ |    
Image
mridula bhaskar gond   एक आसमा बन जा  चाँदनी से भरा  और मैं चाँद बन जाऊ  एक सपना बन जा  हकीकत की तरह  और मैं नींद बन जाऊ  एक सागर बन जा लहरों से भरा  और मैं नदी बन जाऊ  बादल बन जा  पानी से भरा  और मैं जमी बन जाऊ  बारिश बन जा  मोती की तरह  और मैं ताल बन जाऊ। .. 

एक मुलाकात

mridula bhaskar gond लम्बे  दिनों बाद  फिर उनसे मुलाक़ात  हुई  मिली नज़रे  लेकिन  उनसे न कोई बात हुई  मैं उन्हें पहचानते रह सी गई  और वो मुझे पहचानते रह से गए  देखते ही देखते  हम दो पल अनजाने रह गए  उस सफ़र के कुछ पल को  चुराने का मन था  पर एक पल आँख झुकी  देखा वो जाने लगे  जी भर उठा  लगा, जोर की आवाज लगा दूँ  पर उनका नाम क्या था ? बस आँखे उन्हें दूर तक निहारने लग गए  न जाने फिर कब होगी मुलाक़ात उनसे  अब नए अफ़साने हम बनाने लग गए  हम तो छोड़ गए उन्हें ,उनकी यादों के साथ  कुछ ऐसा हो की उन्हें ,हम याद  आने लगे  || 

खुद से मुलाकात कर ले ।

आज चलो खुद से मुलाकात कर ले अपने आंखों से बात कर ले  कहते सुनते इन वर्षो में  कुछ बांंत अपने से खास कर ले आज चलो खुद से मुलाकात कर ले।

शाम तक

Image
कहां खो गये तुम सुबह के उजाले में देखो भीड़ बड़ी है दुनिया में रास्ते हैं बड़े उलझे से और लोग हैं बहुत सख्त पता साथ रखना पर पता याद रखना किसी को क्या फुरसत पड़ी तुम्हें रास्ता पार कराने में खैर आना तो तुम्हें होगा पर याद रहे  आज के ढलते शाम के पहले इन समुद्री लहरों के ऊँचे उठने से पहले पक्षियों के घोसले में  लौटने से पहले चांदनी के आसमान में बिखरने से पहले तुम इस दरवाजे लौट आना लौट आना तुम कुछ याद के साथ लौट आना तुम कुछ अहसास के साथ लौट आना तुम हमारे प्यार के साथ

मेरा पत्र

Image
               मेरा पत्र कलम हाथ में हैं और निगाह इस कागज के पन्ने पर,  सोच रही लिख दूं तुझे एक खत , पर अब खतों का रिस्ता कहां,  सबर कहां तुम्हे पढ़ने और मुझे लिखने का,  पर फिर भी लिख रही हूँ  फिर कभी सोचती  , क्या रखा है इन शब्दों और स्याहीयों में    पर शायद, कुछ अहसास ही काफी होगा,  फिर मैं सोचू,  कैसे पहुँचे तुम तक ये हवा की महक,  कैसे पहुँचे तुम तक मेरी मेहंदी की महक,  कैसे दिखाऊ आज गमले में हमारे, एक नया फूल खिला है ये बरसात कैसे तुम तक भेजु , जो आंगन में गिर कर बहते जा रहा है।  कैसे भेजु ये ठंडी हवा,  जो इन बरसात के बूंदों को   छूते हुए आ रही है।  देखो बादल में छुपे सूरज को,  जो डर रहा  हो जैसे बाहर आने को । इन अहसासों को कैसे कहूं और कैसे लिखूं  पर फिर भी लिख रही हूँ,  कुछ अपने अर्थो में  और कोशिश कर रही हूँ   ऐ दृश्य इन शब्दों में बस जाये,  और जब तुम इन्हें पढ़ों  ये बाहर निकल आये  तब जब देखुंगी, तुम्हें पढ़ते इन्हें,  तुम्हारे चहेरे के हर रंग और हर ढंग को  और तब मैं अपने इस लेखन की  सफलता और असफलता का  परिणाम दे पाऊंगी ।

मेरा भी घर

Image
मेरा भी घर सपनों में भी न हिम्मत हो चाहने को ऐसी एक चाहत मेरा घर सूरज की तेज किरणों से बारिश की तेज झरनों से मुझको बचाये ऐसा घर मेरी चाहत मेरा घर छोटा हो कोई बात नहीं टूटा सा हो कोई परवाह नहीं घिरा हो चार दीवारों  से और मेरे सिर पत एक छत मेरी बस चाहत मेरा घर दिनभर के इस थकान को इस कोयले सी जान को ले जाऊ कहां जहां न कोई डर मेरी चाहत मेरा घर इन्सान के इस अर्थ में मेरी परिभाषा भी ले जाओ कोई कमाता हूँ, खाता हूँ, रोता हूँ और गुनगुनाता हूँ ऊपर पुल है और बगल सड़क न परिवार है न आधार है। कैसे पूरा होगा तेरा वर तेरी चाहत मेरा घर ।

कविता- पता चला है तुम भी इसी शहर में हो

Image
बारिश बरस के रुक गई है आसमा में पानी के बादल मडरा रहे हैं हवाएं ठंडी हो गई हैं और मस्ती से नाच रही है कह रही है तुम भी इसी शहर में हो । जमी की सोंधी खुशबू  पूरे फिज़ा में महक उठी है इन खुस्बू से पता चला है तुम भी इसी शहर में हो । चिड़ियों का एक झुंड निकल पड़ा है घौसलों से इस नए मौसम की सैर को न जाने क्या ये बातें कर रही हैं या कोई संगीत की धुन सजा रही हैं इनके गीतों से पता चला है तुम भी इसी शहर में हो । न जानें क्यों इतनी खुश हूं मैं तेरी यहां उपस्थिति पर  न बातें हैं न मुलाकाते हैं एक अरसा हो गया है जैसे पर मैं शायद ख़ुश हूं  उन पुरानी यादों और मुलाकातों पर हवाओं पर मैंने भी भेजा है  ये पैग़ाम मैं भी हूं  इसी शहर में ।